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*मौत का पर्याय बन चुके कथित लंदन रिटर्न डॉक्टर का बिलासपुर कनेक्शन,अपोलो में भी सेवा दे चुका है यह फर्जी डॉक्टर…..आम लोगो की जिंदगी से खेलता पिशाच….*

Hindu Times बिलासपुर

दमोह के मिशन अस्पताल में हार्ट की सर्जरी के बाद 7 मरीजों के मौत का मामला उजागर हुआ है। मिशन अस्पताल में पदस्थापित रहे कथित तौर पर लंदन रिटर्न डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम के करतूतों की कलई अब खुलने लगीं हैं। दमोह पुलिस की टीम ने आरोपी डॉक्टर नरेंद्र जॉन कैम को प्रयागराज से हिरासत में ले लिया है और उससे पूछताछ की जा रही है।

इस बीच यह भी बात निकलकर सामने आई है कि इसी डॉक्टर ने साल 2006 में छत्तीसगढ़ के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की सर्जरी भी की थी. जिसके 20 दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई थी।
अब उनके बेटे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस अनिल शुक्ला ने पूरे मामले की न्यायिक जांच कराने की मांग की है। वही दूसरी तरफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले पर रिपोर्ट मांग ली है। बताया जा रहा है कि फर्जी डॉक्टर बनकर मरीजों के हार्ट का ऑपरेशन करने वाले नरेन्द्र जॉन केम की डिग्री भी फर्जी पाई गई है। इस मामले की जांच सीएमएचओ कर रहे है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार फर्जी डॉक्टर द्वारा ऑपरेशन करने से 7 मरीजों के मौत के मामले में एक माह से सीएमएचओ जांच पड़ताल को दबाएं बैठे थे। लेकिन राष्ट्रीय मानव अधिकार की टीम आने की सूचना मिलने पर आनन फानन में कोतवाली पहुंच आरोपी डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम के खिलाफ कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज कराई, उन्होंने यह भी बताया कि डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम की एमबीबीएस की डिग्री फर्जी है और यह किसी महिला के नाम पर है।

कैसे हुआ मामले का खुलासा

यह मामला 4 अप्रैल को तब सामने आया जब राष्ट्रीय मानवाधिकार के सदस्य ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए मिशन अस्पताल में 7 मरीजों की मौत और फर्जी डॉक्टर की जानकारी साझा की, इस मामले में जैसे ही जांच शुरू की गई खुद को हार्ट का डॉक्टर बताने आरोपी फरार हो गया। जिसके बाद उसे प्रयागराज से गिरफ्तार कर लिया गया है। बताया जा रहा है कि डॉक्टर नरेन्द्र विक्रमादित्य यादव उर्फ डॉक्टर नरेंद्र जॉन केम ने दमोह के अस्पताल में 43 दिनों तक कार्य किया, इस दौरान उसने कई मरीजों के हार्ट का ऑपरेशन किया जिसमें 7 की मौत हो गई।

जहां मिलनी थी ज़िंदगी, वहां चल रहा था मौत का कारोबार ?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कथित रूप से लंदन के नामी कार्डियोलॉजिस्ट ‘डॉ. एन जॉन केम’ के नाम पर 15 मरीजों के ऑपरेशन किए गए. आरोप हैं कि इसमें से 7 मरीजों की मौत हो गई. इसमें से दो मरीजों की मौत की तो पुष्टि भी हो चुकी है। जिस अस्पताल में मरीज जिंदगी लेने आए थे वहां उन्हें मौत मिली। कथित तौर पर यहां मौत का कारोबार चल रहा था ? फर्जी डॉक्टर मरीजों के साथ प्रैक्टिस कर रहे थे ?

छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष का भी किया था ऑपरेशन

वैसे ये पहला मामला नहीं है, जब डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव विवादों में घिरा हो। जानकारी अनुसार इस फर्जी डॉक्टर की अगस्त 2006 में बिलासपुर के बड़े निजी अस्पताल अपोलो में हुई ऐसी ही घटना में संलिप्तता रही है। अपोलो अस्पताल में पदस्थापना के दौरान इसने छत्तीसगढ़ विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल का ऑपरेशन किया था और इस ऑपरेशन के 20 दिनों बाद ही उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके इलाज के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी पूरी मदद की थी। परिजनों का आरोप है कि उस ऑपरेशन को भी नरेंद्र ने ही अंजाम दिया था। यह भी दावा किया जा रहा है कि इस कथित डॉक्टर ने 10 से अधिक मरीजों की हार्ट की सर्जरी की थी और उनमें से ज्यादातर की मौत हो गई थी।

अपोलो को नोटिस सीएमएचओ ने मांगे डिग्रियों के दस्तावेज

फर्जी डॉक्टर के मामले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने अपोलो हॉस्पिटल को नोटिस जारी किया है। नोटिस में डॉक्टर की शैक्षणिक योग्यताओं से संबंधित दस्तावेज मांगे गए है। जिसमें पूछा गया है कि अपोलो प्रबंधन ने किस आधार पर इस डॉक्टर की नियुक्ति की थी। इसके साथ ही पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल समेत 8 लोगों की मौत के मामले में डॉक्टर के खिलाफ की गई कार्रवाई की जानकारी भी मांगी है।

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कॉर्पोरेट और पुख्ता अप टू डेट सिस्टमेटिक अस्पताल में कैसे और किस आधार पर बतौर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य को विशेषज्ञ चिकित्सक के रूप में नौकरी दे दी गई? डिग्री, मान्यता के अलावा किस किस संस्थान में सेवाएं दी और वहां ट्रैक रिकॉर्ड कैसा रहा ? क्या इसकी पड़ताल नहीं की गई ? और यदि पड़ताल की गई उन्हें क्या जानकारी मिली? क्या बतौर कार्डियोलॉजिस्ट नियुक्ति और ऑपरेशन करने की छूट देकर अस्पताल प्रबंधन ने मरीजों की भरोसे की हत्या की है?

अब सवाल यह उठता हैं कि उसे इलाज करने की छूट किसने दी? जो लोग जो भरोसे के पहरेदार थे, वह क्यों खामोश रहे? और आज जब कई लोगों की मौत हमारे सामने हैं तो क्या कोई सिस्टम ज़िम्मेदारी लेगा? अब देखने वाली बात यह होगी कि इस भयावह घटना के बाद इस फर्जी डॉक्टर के खिलाफ पुख्ता कार्यवाही की जाएगी या किसी कहानी की तरह किसी और की मौत के इंतज़ार में फाइलों में बंद हो जाएगी?

Anil Mishra

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