भारत वर्ष में परिवार रूपी संस्था बदलते परिवेश में बहुत से अंतर्कलह से गुजर रही: जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अनन्तानन्द सरस्वती

नारायण
अभी भारत वर्ष में परिवार रूपी संस्था बदलते परिवेश में बहुत से अंतर्कलह से गुजर रही है।
व्यक्ति यह भूल जाता है की विवाह एक प्रक्रिया है जहां मनुष्य को सुसंस्कृत होकर के अपने जीवन को एक साथ बिताने का दो लोग निर्णय लेते हैं।हमारे सनातन संस्कृति में जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया है 25 वर्ष ब्रह्मचारी 50 वर्ष तक गृहस्थ 75 वर्ष तक वानप्रस्थ और 100 वर्ष तक सन्यास समस्या यही आता है की विवाह रूपी संस्था में हम समझते हैं कि 100 साल तक एक साथ जीना है और वह फिर बोझ के रूप में प्रणीत होने लगता है! जबकि यहाँ गृहस्थ 25 वर्ष का कालखण्ड है?
विवाह के साथ कई दायित्व आते हैं केवल दो लोगों के जुड़ने का ही वह माध्यम नहीं है बल्कि समाज के सभी व्यवस्थाओं के दायित्व निर्वाह का हमें जिम्मेदारी भी विवाह के उपरांत प्राप्त होता है !अगर मनुष्य अपने दायित्वों के प्रति जागरूक हो परिवार और विवाह की संस्था विखंडन की जगह पुन: सुख देने का माध्यम बन सकती है..
अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अनन्तानन्द सरस्वती ,राजगुरु मठ पीठाधीश्वर -काशी
