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छत्तीसगढ़ के नौकरशाहों का जलवा……..साहब के आने और जाने पर बड़े आयोजन का बांटा जा रहा आमंत्रण पत्र…..

Hindu Times

छत्तीसगढ़ में मंत्रियों से ज़्यादा अफसरों का जलवा जलाल बरक़रार हैं.सत्ता आए और जाए इससे नौकरशाहों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.अफसरों के अपने शौक काम से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं.विभाग में आगमन के साथ जाने पर विदाई का समारोह आजकल राजशाही पार्टियो के साथ किया जाता हैं.छत्तीसगढ़ में आज कल यही नजारा नजर आता हैं.आख़िर बड़े होटल में अफसरों के ऐसे आयोजन का खर्च कौन उठाता है.यह आज तक जनता को समझ में नहीं आया.सुशासन की सत्ता में अफसरों का जलवा राजाओ जैसा ही हैं.विभाग में नए साहब आ रहे तो स्वागत पार्टी का आयोजन विभाग से एक साहब जा रहे है तो विदाई पार्टी….शायद .पार्टी करना बेहद जरूरी हो गया हैं.पहले ऐसे आयोजन केवल नाम मात्र के हुआ करते थे.कार्यालय के अंदर आदर सत्कार हुआ करता था.पर अब यह आयोजन थ्री स्टार होटल्स में होने लगे हैं.एक तरफ़ सुशासन की सरकार में वित्त मंत्री प्रदेश सरकार की आर्थिक हालत सही नहीं है ऐसा वक्तव्य देते हैं.फ़िज़ूल खर्च पर रोक लगाने का डंका बजाते है वही दूसरी और अफसरों का ऐसा आयोजन मंत्री जी को मुंह चिड़ाते नजर आते हैं.सुशासन तिहार में एक ऐसा पत्र भी सोशल मीडिया में खूब वायरल हुआ था जिसमे एक व्यक्ति ने मुख्यमंत्री जी से वित्त मंत्री को हटाने की बात करता है उसका कहना था की वित्त मंत्री प्रदेश की माली हालत को ख़राब बता रहे है वही दूसरी ओर अफसरों का ऐसा आयोजन किया जा रहा है वो भी निमंत्रण पत्र के साथ बड़े ही आश्चर्य की बात हैं.अब इस आयोजन खाने पीने की तगड़ी व्यवस्था भी रहेगी.इस बड़े भव्य आयोजन में साहबो के लिए अच्छी व्यवस्था भी रहेगी.

काम करने आए हो तो काम कर लो….जनता अपनी समस्याओ में जूझ रही…..आने और जाने पर इतना ढोल पीटना किस लिए…..किसको बताना चाहते हो की हम आ गए….अब ऐसी बाते भी बाजारो में होने लगी हैं

अब ऐसे आयोजन का खर्च किसके मत्थे है यह भी जाँच का विषय हैं.आख़िर राजधानी की बड़ी होटल में अफसरों का ऐसा आयोजन चर्चाओ में बना हुआ हैं. प्रदेश की राजधानी से एक नौकरशाह देश की राजधानी प्रतिनियुक्ति में जा रहे है उनकी जगह दूसरे नौकरशाह आ रहे है अब इनके आने और जाने पर उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त के नाम से आमंत्रण पत्र बँटवाया जा रहा हैं.आख़िर इनके आने और जाने से छत्तीसगढ़ की जनता का क्या फ़ायदा हो रहा है.यह समझ से परे हैं. इस आयोजन का खर्च अगर सरकारी खजाने से हो रहा है तो यह सही मापदंड तो नहीं माना जाएगा।आख़िर यह तो साबित हो गया है की सुशासन की सरकार में अफसरों का ही बोलबाला हैं।अब ऐसी फिज़ूलखर्ची पर कौन लगाम लगाएगा.काम करने वालो को जनता उनके काम से ही जान जाती है.फिर यह राजशाही उत्सव किसके लिए आयोजित किया जा रहा है.

Anil Mishra

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