छत्तीसगढ

सहकारिता के संयुक्त पंजीयक मामले में हिमशिखर गुप्ता सहित चार आई ए एस को अवमानना नोटिस।

बिलासपुर हिन्दू टाइम्स:

छत्तीसगढ़ राज्य सहकारिता विभाग के संयुक्त पंजीयक सुनील तिवारी ने एक जीवित पत्नी के रहते किया दूसरा विवाह। शिकायत हुई, फिर हाईकोर्ट के आदेश पर भी विभागीय अफसरों ने कार्यवाही नहीं किया। पांच IAS अफसरों के विरुद्ध अवमानना नोटिस जारी।*

इस मामले में उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संतोष पांडे का कहना है की छत्तीसगढ़ में नौकरशाही अपनी मनमानी करती है यह बात इस मामले से समझ में आती है.सत्ताधीशो को इस मामले के साथ ही अन्य मामलो को मनन करना चाहिए.इस प्रकरण में इन आईएएस अफसरों पर भी कार्रवाही करने की आवश्यकता है.सरकार को भी जागने की जरुरत है.न्यायालय की अवहेलना करना इनकी आदत हो चुकी है.ऐसे मदमस्त अफसरों को भी सजा देने की आवश्यकता है.

 उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ की याचिका क्रमांक W.P.C. No. 3097/2021 में पारित आदेश दिनांक 29.09.2023 का निर्धारित समयावधि में साशय अनुपालन ना कर आरोपी सुनील तिवारी का बचाव किए जाने पर अवमानना याचिका क्रमांक CONT/1140/2024 नोटिस दिनांक 08/10/2024

*संदर्भ :* सुनील तिवारी तत्कालीन संयुक्त पंजीयक सहकारी संस्थाएं बिलासपुर संभाग बिलासपुर (छ.ग.) के विरुद्ध एक जीवित पत्नी के रहते द्वि-विवाह किये जाने के कारण उसे तत्काल प्रभाव से निलंबित कर विभागीय जांच संस्थित किये जाने की गंभीर शिकायत बाबत।

*छत्तीसगढ़ शासन के आरोपी IAS अधिकारीगण, जिनके विरुद्ध अवमानना नोटिस जारी हुआ – 

1 हिमशिखर गुप्ता ias तत्कालीन सचिव सहकारिता 

2 सीआर प्रसन्ना ias वर्तमान सचिव सहकारिता 

3 रमेश शर्मा तत्कालीन ias पंजीयक सहकारिता 

4 दीपक सोनी ias तत्कालीन पंजीयक सहकारिता 

5 कुलदीप शर्मा ias वर्तमान पंजीयक सहकारिता 

*शिकायत के तथ्य* 

दिनांक 25.10.2020 को शिकायतकर्ता विनय शुक्ला बिलासपुर निवासी के द्वारा निम्नानुसार शिकायत सहकारिता विभाग को प्रेषित किया गया था कि – 

1) सुनील तिवारी तत्कालीन संयुक्त पंजीयक सहकारी संस्थाएं बिलासपुर संभाग के द्वारा सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 22 के उल्लंघन में एक पत्नी के जीवित अवस्था में दूसरा विवाह बिना शासन के मंजूरी के किया गया है और पुत्र उत्पन्न भी किया गया है, साथ ही उसके द्वारा विधि के प्रत्यक्ष निर्देश की जानबूझकर अवज्ञा किये जाने के कारण भारतीय दण्ड विधान की धारा 166, 420, 34 एवं अन्य धाराओं के तहत अपराध किया गया। अतः अपचारी अधिकारी को निलंबित किया जाए एवं विभागीय जांच कर उसे बर्खास्त कर, उसके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण भी दर्ज कराया जाए। 

2) विभागीय IAS अधिकारियों की आपसी मिलीभगत के कारण शिकायतकर्ता की उक्त शिकायत पर कोई प्रभावी कार्यवाही न होने के कारण दिनांक 27.07.2021 को शिकायतकर्ता द्वारा  उच्च न्यायालय में रिट याचिका क्रमांक W.P.C. No. 3097/2021 सुनवाई हेतु दाखिल किया गया, जिस पर दिनांक 29.09.2023 को  न्यायालय द्वारा सुनील तिवारी संयुक्त पंजीयक सहकारिता विभाग के विरुद्ध इस मामले की 6 माह के भीतर जांच किए जाने के आदेश दिये गये हैं। 

3) उच्च न्यायालीन आदेश के परिपालन में शिकायतकर्ता द्वारा विभाग को प्रेषित कर निवेदन किया गया कि सुनील तिवारी तत्कालीन संयुक्त पंजीयक सहकारिता विभाग बिलासपुर डिवीजन के विरुद्ध द्वि-विवाह किये जाने के कारण आचरण नियम 22 का उल्लंघन साशय उल्लंघन किये जाने के कारण अपराध घटित होने से उसे तत्काल प्रभाव से निलंबित कर 6 माह के भीतर विभागीय जांच (अंतर्गत नियम 14 छत्तीसगढ़ सिविल सेवा वर्गीकरण नियंत्रण अपील नियम 1966) किया जाकर समुचित कार्यवाही किया जाए, किंतु आरोपी IAS अधिकारीगण के द्वारा साशय जांच कार्यवाही नहीं किया गया, ना ही निलंबित किया गया। बल्कि इस मामले में उन IAS अधिकारियों के द्वारा ना केवल  उच्च न्यायालय के आदेश की अवज्ञा की गई है, बल्कि लोकसेवक पद में रहते हुए, विधि के प्रत्यक्ष निर्देश की जानबूझकर अवज्ञा कर, आपस में मिलकर, अपचारी अधिकारी सुनील तिवारी को संभावित विभागीय कार्यवाही से बचाकर, स्वयं के पद का दुरुपयोग भी किया गया। 

4) इस प्रकार इन IAS अधिकारियों के द्वारा जहां एक ओर स्पष्टत: उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना किया गया, वहीं एक ओर भारतीय न्याय संहिता के तहत अपराध भी कारित किया गया है। जिस पर शिकायतकर्ता ने अपचारी IAS अधिकारियों को नोटिस भी जारी किया। इसके बावजूद भी इनके द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया गया। तब विवश होकर शिकायतकर्ता द्वारा अपने अधिवक्ता  संतोष कुमार पाण्डेय के माध्यम से दिनांक 12. 9.2024 को सभी पांचो IAS अधिकारियों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका क्रमांक 1140/2024 दाखिल किया। जिस पर दिनांक 08/10/2024 को सुनवाई पश्चात  उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति  नरेंद्र कुमार व्यास  ने उपरोक्त 5 IAS अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है कि क्यों ना आप लोगों के विरुद्ध इस मामले में न्यायालयीन अवमानना अधिनियम 1971 के तहत कार्यवाही संस्थित करने हेतु आरोप तय किए जायें ?

उच्च न्यायालय की तल्ख़ टिप्पणी के बाद सुशासन की साय सरकार क्या कार्रवाही करती है यह तो समझ से परे है.इन अफसरों को जब न्यायालय का डर नहीं है तो आप इनके तौर तरीको को आसानी  से समझ सकते हो.ब्यरोक्रेसी की अपनी मनमानी के किस्से अकसर चर्चा में आते भी है.इनके सामने सत्ताधीश भी शायद दही जमाकर बैठे रहते है.साय सरकार इस सन्दर्भ में क्या फैसला लेगी यह देखना फ़िलहाल बाकि है.

Anil Mishra

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