*न्यूक्लियर परिवार परंपरा या भौतिकता की देन……..अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अनन्तानन्द सरस्वती ,राजगुरु मठ पीठाधीश्वर -काशी….*

हिन्दू टाइम्स काशी उत्तरप्रदेश
नारायण भारत के जीवन दर्शन को जब हम देखते हैं तो उसमें परिवार एक महत्वपूर्ण इकाई है।वर्तमान के परिवेश में यह बड़ा विमर्श का विषय बना हुआ है की परिवार छोटा होता जा रहा है,एकल होता जा रहा है!विमर्श होना भी चाहिए, क्योंकि एकल परिवार,छोटा परिवार के सामने संयुक्त परिवार के मुकाबले ज्यादा समस्याएं आती हैं?यहां दो विषय है संयुक्त परिवार और एकल परिवार। भारत में संयुक्त परिवार की परंपरा रही है और आज भी होनी चाहिए!
वहीं एकल परिवार या न्यूक्लियर परिवार की जब बात आती है तो ध्यान देना चाहिए कि भारत में चार आश्रम बनाए गए ब्रह्मचारी 25 वर्ष,गृहस्थ 25 वर्ष, वानप्रस्त 25वर्ष और सन्यास 25 वर्ष!अर्थात एक ब्रह्मचारी जब अपना 25 वर्ष का ब्रह्मचर्य आश्रम त्याग करके गृहस्थ आश्रम में आता है और 25 वर्ष गृहस्थ आश्रम जीकर वह वानप्रस्थ में जाने की जब तैयारी करता है, उस समय उसका बालक या बालिका 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुके होते होंगे?ऐसे स्थिति में बच्चों के विवाह के तुरंत उपरांत अगर हम उपरोक्त आश्रम पद्धति को माने तो हमें गृह त्याग करके वानप्रस्थी हो जाना चाहिए? अब ऐसी स्थिति में परिवार में एक पिता के तो संतान ही रह जाएगी जिसको आज न्यूक्लियर फैमिली कहा जाने लगा है!हां वर्तमान में जीवन पद्धतियां बदली हैं,आश्रमों की स्थितियां बदली हैं तो इसमें विमर्श और सामंजस्य की आवश्यकता है।व्यथित और दुखी होने की जगह और निश्चित ही सामंजस्य और संवाद से इस समस्या का भी जिसको हम न्यूक्लियर फैमिली प्रॉब्लम्स कह रहे हैं निदान निकलेगा और परम्परा के निभाने का मार्ग भी….
अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अनन्तानन्द सरस्वती ,राजगुरु मठ पीठाधीश्वर -काशी
