सज्जन को भी दुर्जन बनाने में यहां कोई कमी नहीं रखते…..अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अनन्तानन्द सरस्वती ,राजगुरु मठ पीठाधीश्वर -काशी

काशी उत्तरप्रदेश हिन्दू टाइम्स
समाज में भटकाव के कारण
नारायण पिछले 18 वर्षों से अगर मैं अपने धार्मिक सामाजिक कार्यों के अनुभव से कुछ बातें समाज के लिए समझ पाया तो वह सबसे बड़ी बात यह रही कि जब सज्जन शक्ति कार्य करने के लिए समाज में उतरती है तो दुर्जन शक्तियां उस सज्जन शक्ति को अपने जैसा बनने के लिए उसके खिलाफ नाना प्रकार से षड्यंत्र करते हैं!
जिससे की समाज में यह बात व्याप्त हो जाए कि यह व्यक्ति सज्जन नहीं है? वस्तुत इसका कारण जो समझ पाया वह कारण यह है कि दुर्जन जानता है की दुर्जनों के बीच सही जीवन सुखी जीवन नहीं जी सकता है। इसलिए वह सज्जन शक्तियों के बीच जाकर के उनके नेतृत्व को करने की चेष्टा करके,उनके बीच सम्मान पाकर के,अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए वह जो प्रयास कर सकता है करने का भरपूर कोशिश करता है! ऐसी स्थिति में जब कोई सज्जन समाज के सम्मुख आदर्श प्रस्तुत करने का प्रयास करता है तो उस सज्जन को भी दुर्जन बनाने में यह कोई कमी नहीं रखते और तकलीफ तो यहां आती है की, सज्जन शक्तियां भी उस सज्जन व्यक्ति को यह जानते हुए यह सही है!
मौन रह जाता है!समर्थन में ना कुछ लिख पाता है, ना बोल पाता है,ना पढ़ पाता है,ना बता पाता है और यही फिर सज्जन शक्तियों का सज्जनों के द्वारा नेतृत्व करने की परंपरा दम तोड़ने के कगार पर आती है और दुर्जन सुख की आकांक्षा में सज्जनों के पास आता तो है, लेकिन अपने अस्वभाविक व्यवहार के कारण वहां सज्जनों के बीच भी कुछ दिनों में वह तिरस्कृत सा महसूस करने लगता है।फिर समाज वही का वहीं रह जाता है।इसलिए जरूरत केवल सज्जन शक्तियों को अपने सज्जन नेतृत्व के संरक्षण की है और कुछ नहीं फिर समाज स्वत ही अपने विकास के सज्जन गाथा को लिख देगा….
अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अनन्तानन्द सरस्वती ,राजगुरु मठ पीठाधीश्वर -काशी
